औषधीय फल है पपीता



महंगाई की मार से भारतीय आम जन इतने परेशान हैं कि वे उचित भोजन तक सही मात्रा में नहीं ले पाते। ऐसे में फलाहार की बात तो स्वप्नवत ही है। हां, पपीता, केला, तरबूज जैसे कुछ फल अवश्य इस कमी को पूरा करते हैं।
कच्चे पपीते के रस मंें ‘पपेइन‘ नामक रसायनिक अंश पाया जाता है, जो भोजन पचाने में सहायक होता है। यह मूत्रा साफ करता है, विरेचक है। कच्चा पपीता सब्जी, अचार के काम आता है।
अपच, जिगर विकार बवासीर आदि रोगों के लिए यह गुणकारी है। पका पपीता रस एवं बल विकारों को दूर कर शक्ति सुधारता है। जिन्हें भूख न लगती हो, पेट विकार पीड़ित रहता हो, उन्हें भोजन से पूर्व भरपेट पका पपीता खाना चाहिए। कुछ दिन लगातार इस्तेमाल से अधिक लाभ होगा।
इसमें विटामिन ‘ए‘ भरपूर मात्रा में प्राप्त रहता है जो रतौंधी तथा नेत्रा ज्योति क्षीणता में लेना चाहिए। पीलिया, अनिश्चित मासिक धर्म, छाती में बलगम जमने पर हितकारी है। स्त्रिायों के बन्ध्यापन, प्लीहावृद्धि, रक्त के जमाव, हड्डियों के जोड़ों में दर्द भोजन में अनिच्छा मिटाने में यह सहायक है। खाने में अनिच्छा लगे तो कालीमिर्च, सेंधा या काला नमक बुरक कर खाना चाहिए।

औषधीय लाभः- वैसे तो जहां आसानी से ताजे पके पपीते सुलभ हों, वहां निराहार नाश्ते में लेना पेट के लिए बहुत ही हितकर है। हां, कच्चे पक्के दोनों रूपों में ही नहीं दूध, पत्ते, छाल, जड़ें आदि का भी कई बीमारियों में प्रयोग किया जाता हैं। संकट की ऐसी स्थितियों में इनका प्रयोग कर लाभ उठाइए:-

कीट रोगः- बच्चों के पेट में अक्सर सफेद पतले कीट पड़ जाते हैं जो काटते रहते हैं। इनसे छुटकारा दिलाने के लिए कच्चे पपीते का रस दूध में मिलाकर पिलाना चाहिए।
अनिश्चित मासिक धर्मः- जिन स्त्रिायों का मासिक धर्म अनिश्चित और दुखदायी होता है, उन्हें कच्चे पपीते का रस बनाकर नियमित रूप से पीना चाहिए।

त्वचा रोगों मेंः- अगर खाज, खुजली, दाद, एक्ज़ीमा आदि से परेशान हों तो कच्चे पपीते का दूध निकाल कर खुरच कर डेटोल या नीम के पानी से धोकर लगाना चाहिए।

कैंसर मेंः- आंतों के कैंसर में विविध एंजाइमों के कारण पपीते का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। कच्चे पपीते का दही में बनाया रायता भी जितना ले सकें लें।
सलाद में पपीता लेना भी हितकारी सिद्ध होगा। देहातों में पानी की उचित शुद्धि नहीं होने से नारू (एक प्रकार का लंबा सफेद कीड़ा) हो जाता है जो बादलों के गर्जन के समय बहुत दर्द देता है। ऐसे में पपीते के गूदे, हींग और नौसादर की पट्टी बांधनी चाहिए। कच्चे पपीते का रस भी 20 ग्राम सुबह में निराहार लेना चाहिए।

उदर रोगों मेंः- पेट के विकारों के लिए यह सर्वश्रेष्ठ फल है। मन्दाग्नि, कब्ज, अजीर्ण, आंतों की सूजन, पेट फूलना आदि में पपीते की फांकों पर सेंधा नमक, जीरा और नींबू का रस मिलाकर कुछ दिन लगातार दोनों समय ही लेना चाहिए।

दन्त रोगों में:- दांतों से खून आता हो, दर्द रहता हो, दांत हिलते हों तो पपीता खाने से लाभ होगा। पपेन से मंजन भी ठीक रहता है।

हृदय रोगों मेंः- हृदय रोग के रोगियों को कच्चे पपीते के नर्म हरे पत्तों को उबालकर सौंफ, इलायची, कालीमिर्च, काला नमक मिलाकर कुनकुना रात को कुछ दिन लगातार पिलाना चाहिए। फील पांव (हाथीपांव) में पपीते के हरे पत्तों की पुल्टिस सूजन वाले स्थान पर हल्की-हल्की गरम हो, तब बांधना चाहिए। पपीता खाना भी आराम देगा। सलाद में लेना श्रेयस्कर रहेगा।

बवासीरः- बवासीर का मूल कारण कब्जियत है। रक्षा के लिए प्रतिदिन सुबह-सुबह खाली पेट पका पपीता खिलाना चाहिए। कच्चे पपीते का रस भी पीना चाहिए। खून अधिक आता हो तो पपीते की खीर, पपीते का हलवा खाना चाहिए।

झुर्रियांः- जिन तरूणियों के चेहरों पर झुर्रियां पड़ने लग गई हो अथवा त्वचा रूखी हो लटकने लगी हो तो कच्चे पपीते का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाकर सूखने दें। बाद में अच्छी तरह धो दें। कुछ दिनों के प्रयोग से चेहरा गुलाबी रंगत का हो उठेगा।

मूत्रा विकारों मेंः- पेशाब में जलन होना, रूक रूक कर पेशाब आना, मूत्रा मार्ग में संक्रमण होना, बार-बार पेशाब की इच्छा बनी रहना, ऐसी स्थिति में पके पपीते को खिलाना चाहिए।

चेहरे के दाग धब्बेः- कच्चे पपीते को काटकर चेहरे पर रगड़ने से चेहरे के दाग साफ होते हैं। धब्बों, कील, कालिमा, मैल की परत आदि के लिए कच्चे पपीते का रस लगाएं। मुंहासों पर भी पपीते का रस लगाना चाहिए। इस तरह पपीते को अधिकाधिक इस्तेमाल में लाकर उसका लाभ उठाना चाहिए।

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