अग्निसार क्रिया और मन की शक्ति द्वारा आँतों का सम्पूर्ण उपचार
एक दिन देखा कि वॉशिंग मशीन का ड्रेन पाइप ठीक से काम नहीं कर रहा है। मशीन से बेकार पानी ठीक से बाहर नहीं निकल रहा था और बार-बार रुक भी जाता था। मशीन पुरानी हो गई थी अतः ड्रेन पाइप में, जो प्लास्टिक का बना होता है और काफ़ी लचीला होता है, अंदर कचरा जमने से वह कड़ा भी हो गया था और उसका मार्ग भी संकुचित हो गया था।
उस पर एक प्रयोग किया। पाइप को ज़मीन पर लिटाकर पैर से धीरे-धीरे दबाना शुरू किया तो उसके अंदर चारों ओर जमा हुआ कचरा सतह से छूट कर पानी में बह गया और ड्रेन पाइप ठीक से काम करने लगा।
ऐसे ही कई ड्रेन पाइप हमारे शरीर में भी हैं जो हमारी गंदगी को बाहर निकालने का काम करते हैं और उनमें से एक है हमारी आँतें। हमारी आँतें हमारे अपेक्षाकृत ठोस कचरे को मल के रूप में बाहर ले जाने का कार्य करती हैं लेकिन कभी-कभी उनमें रुकावट पैदा हो जाती है और हम मलावरोध अथवा कोष्ठबद्धता या कब्ज़ के शिकार हो जाते हैं।
इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे खान-पान में अनियमितता अथवा ग़लत भोजन ले लेना। स्वास्थ्य के नियमों का सही पालन न करने से अथवा पर्याप्त व्यायाम के अभाव में भी हम कब्ज़ अथवा कोष्ठबद्धता के शिकार हो जाते हैं। भोजन, दिनचर्या अथवा स्वास्थ्य के प्रति नकारात्मक सोच भी हमारी व्याधियों के लिए उत्तरदायी होती हैं। कारण कुछ भी हो लेकिन कब्ज़ ऐसा रोग है जो अन्य अनेक रोगों को बुला लेता है अतः उसका शीघ्र उपचार अनिवार्य है।
ऊपर ड्रेन पाइप को साफ करने का जो तरीक़ा बताया गया है क्या उसी तरीक़े से आँतों की सफाई भी की जा सकती है? दरअसल आँतों की सफाई का तरीक़ा उससे मिलता-जुलता ही है और वह है अग्निसार क्रिया का अभ्यास।
अग्निसार क्रिया में प्रमुख रूप से उदर की मांस-पेशियों को संकुचित करने और फैलाने का कार्य किया जाता है जिससे आँतों पर दबाव पड़ता है और उस दबाव से आँतों की भीतरी परत पर चिपका मल ढीला होकर छूट जाता है और सरलता से बाहर निकल जाता है।
यदि आप सीधे खड़े होकर पेट को अंदर-बाहर करेंगे अथवा सिकोड़ेंगे व फैलाएँगे तो भी कोष्ठबद्धता अथवा मलावरोध से मुक्ति मिलेगी लेकिन इसका सही तरीक़ा इस प्रकार है। सीधे खड़े होकर पहले ख़ूब गहरी साँस लेकर पूरी तरह पेट में हवा भर लें। फिर मूलबंध और जालंधर बंध लगाकर पेट को सिकोड़ें और फैलाएँ।
एक बार सांस भरने के बाद आसानी से जितनी बार यह क्रिया कर सकते हैं, करें तथा साँस बाहर निकाल दें। पुनः गहरा साँस लेकर दोनों बंध लगाकर फिर इस क्रिया को दोहराएँ। पहले धीरे-धीरे अभ्यास करें और जब प्रक्रिया अच्छी तरह समझ में आ जाए तो अपेक्षाकृत जल्दी-जल्दी पेट को आगे-पीछे ले जाएँ। कम से कम दस मिनट अभ्यास करें।
कब्ज़ या कोष्ठबद्धता की स्थिति में शौच के समय लगातार मूलबंध लगाने और छोड़ने से भी मलावरोध से मुक्ति मिलती है क्योंकि इससे आँतों और मलद्वार में क्रमानुकुंचन गति उत्पन्न होने से मल सरलता से बाहर आ जाता है। इस प्रकार का अभ्यास नियमित रूप से किया जाए तो संबंधित अंगों का पर्याप्त व्यायाम भी हो जाता है और इससे इन अंगों अथवा संस्थानों से संबंधित रोग कभी नहीं होते।
अग्निसार क्रिया और मूलबंध के नियमित रूप से अभ्यास करने पर पुरानी से पुरानी कब्ज़ भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। इस अभ्यास से पीड़ित व्यक्ति रोगमुक्त हो जाएगा और स्वस्थ व्यक्ति अधिक स्वस्थ और प्रसन्नचित बनेगा।
शारीरिक क्रिया अर्थात् अग्निसार क्रिया के अभ्यास के साथ-साथ एक मानसिक क्रिया भी करेंगे तो और ज़्यादा तथा शीघ्र लाभ होगा। जब भी गहरा साँस अंदर लें तो अनुभव करें कि साँस में एक उपचारक शक्ति है और वह आँतों की ख़ुश्की और कड़ेपन को समाप्त कर रही है। आँतें लगातार लचीली और स्वस्थ होकर निर्मल हो रही हैं। इसी मानसिक भाव के साथ अग्निसार क्रिया का अभ्यास करते रहें। साँस बाहर छोड़ते वक़्त भी अनुभव करें कि साँस के साथ सारी पीड़ा, सारे रोग बाहर निकल रहा है और आप लगातार स्वस्थ हो रहे हैं।
रोगमुक्ति और पूर्ण स्वास्थ्य के लिए व्यायाम के साथ-साथ आरोग्य और पूर्ण स्वास्थ्य का भाव भी मन में अवश्य होना चाहिए। यही सम्पूर्ण उपचार प्रक्रिया है।
No comments