श्री वेंकटेश्वर स्वामीजी का भव्य मंदिर - तिरूपति बालाजी



दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल तिरूपति अब पूरे भारत में लोकप्रिय है। यहां श्री वेंकटेश्वर स्वामीजी का भव्य मंदिर है। तिरूपति नगर में स्थित यह मंदिर बालाजी के नाम से मशहूर है।
आंध्रप्रदेश में यह शहर राजधानी हैदराबाद से करीब सात सौ किलोमीटर दूर है। रेल या सड़क मार्ग से तिरूपति पहुंचने के लिए चेन्नई (मद्रास) पहुंचना सुविधाजनक है। वहां से तीर्थस्थान की दूरी केवल 150 कि. मी. है। चेन्नई से तिरूपति के लिए रेलगाड़ियां जाती हैं तथा सड़क के रास्ते बस, टैक्सी तथा मोटरकार भी उपलब्ध हैं।
बालाजी का मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसके निकट सात अन्य पहाड़ियां हैं, इसलिए इसे सप्तगिरि क्षेत्रा भी कहा जाता है। तिरूपति नगर से बालाजी मंदिर तक पहुंचने के लिए हरे भरे जंगलों से होकर घुमावदार सड़क ऊपर की ओर जाती है। इस पुरातन मंदिर का इतिहास लगभग दो हजार वर्ष पुराना है। यहां पर भगवान विष्णु की पूजा सप्तगिरि के देवता के रूप में की जाती रही है।
श्री बालाजी का मुख्य मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का सुंदर नमूना है। मुख्य मंदिर चारों ओर कलात्मक गोपुरम् (प्रवेशद्वार) से घिरा है। मध्य में स्थित मंदिर का विमान तथा ध्वज स्तंभ स्वर्ण मंडित है जो सदैव चमकता रहता है। मंदिर के गर्भगृह में वेंकटेश्वर स्वामी की प्रतिमा ग्रेनाइट (कसौटी) पत्थर से बनी है जो कमलपुष्प पर खड़ी अवस्था में स्थित है। प्रतिमा के हाथों में चक्र और शंख शोभायमान हैं जिनमें अनेक रत्न जड़े हैं। श्रीपति के मस्तक पर रत्नजटित सुंदर मुकुट है। भक्तों द्वारा-द्वार पर स्थित वेदी से प्रभु की पूजा-अर्चना की जाती है।
श्री वेंकटेश्वर के पूरे मंदिर परिसर की संचालन व्यवस्था एक ट्रस्ट के अधीन है जिसका नाम तिरूपति तिरूमला देवस्थानम है। धर्मप्राण यात्रियों के दर्शन, आने-जाने और ठहरने की भी व्यवस्था इस ट्रस्ट के द्वारा उत्तम ढंग से की जाती है। इस ट्रस्ट की शाखायें चेन्नई, हैदराबाद, बंगलोर, नई दिल्ली के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन में भी हैं।
प्रातःकाल से ही देवदर्शन के लिए भक्तों की भीड़ जमा होने लगती है। इस दिव्य तीर्थ में साल भर दर्शनार्थियों की भीड़ रहतीं है किंतु फिर भी कोई रेलपेल नहीं क्योंकि दर्शन के लिए यहां ट्रस्ट के द्वारा बहुत सुंदर और उपयुक्त व्यवस्था की गई है। देवता के दर्शन के लिए यहां दो पद्धति हैं-प्रथम-धर्म दर्शन तथा दूसरा सवा पांच हजार रूपए के शुल्क के द्वारा शीघ्र दर्शन कराये जाने की व्यवस्था है।
ऐसी मान्यता है कि तिरूपति के देवता जाग्रत अवस्था में हैं अतएवं इनकी पूजा से मनोकामना की शीघ्र पूर्ति होती है। भक्तजन मनोकामना पूरी होने पर पुनः दर्शन के लिए आते हैं और श्रद्धा से ओतप्रोत हो चढ़ावा चढ़ाते हैं और दान-पूजा करते हैं। मुख्य मंदिर के पास ही गुप्तदान प्राप्त करने की व्यवस्था है जिसमें रूपए पैसे तथा गहने-जेवर के अलावा अनेक प्रकार की धन संपदा भक्त लोग गुप्तदान के रूप में अर्पित करते हैं। यह मंदिर, भारत में ही नहीं, दुनिया का सबसे धनी देवालय है।
देवालय की धनराशि धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा विश्वविद्यालय, अनाथालय, वेद पाठशाला तथा जनकल्याण के लिए व्यय की जाती है। तिरूमला पहाड़ियों के नीचे स्थित तिरूपति नगर में भी कई मंदिर तथा दर्शनीय स्थान हैं। इनमें श्री कोदंडस्वामी मंदिर, गोविंदराज पेरूमल मंदिर तथा कपिलतीर्थम् सरोवर उल्लेखनीय हैं।

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