अमृतसर का स्वर्ण मंदिर
पंजाब के खूबसूरत नगर अमृतसर में स्थित सिक्खों के परम पूज्य गुरूद्वारे हर मंदिर साहब में केवल भारत ही नहीं, संसार के कोने कोने से सिख और हिंदु भक्तजन माथा टेकने पहंुचते रहते हैं। एक सुंदर सरोवर के बीच में स्थित इस गुरूद्वारे को श्रद्धालुओं ने खूब सजा कर रखा है।
ऐसे प्रमाण मिलते है कि आरंभ में यहां पर छोटा सा तालाब था जिसके जल में चर्म रोग को ठीक करने की अद्भुत शक्ति भी। बहुत पहले सिख गुरू अर्जुन देव ने यहां डेरा डाला तथा अपने आशीर्वाद और वहां स्थित सरोवर के जल से लोगों का दुःख दूर किया। बाद में लाहौर तथा निकटवर्ती इलाकों से लोग वहां पहुंचने लगे और इस सरोवर की लोकप्रियता बढ़ने लगी। इस तरह सरोवर का नाम अमृतसरोवर हो गया तथा साथ में बस रही बस्ती का नाम अमृतसर पड़ गया।
अमृत के समान पवित्रा तथा स्वच्छ जल से भरे सरोवर के बीच में गुरूद्वारे के निर्माण कार्य की कथा भी बहुत रोचक है। इसे केवल मजदूरों और कारीगरों के द्वारा नहीं बनाया गया बल्कि यहां आने वाले छोटे बड़े सभी भक्तजनों ने सेवा भाव से कठिन परिश्रम का हर मंदिर कर निर्माण किया। भक्तों की इस सेवा भावना के बदले उन्हें गुरू का आशीर्वाद मिलता रहा तथा एक छोटी बस्ती से विकसित होता हुआ अमृतसर एक विशाल नगर बन गया।
हर मंदिर साहब जो अब स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, गुरू अर्जुन देव की प्रेरणा से सतरहवीं सदी में बनाया गया था। इस गुरूद्वारे का निर्माण सरोवर के किनारे नहीं बल्कि मध्य भाग में पत्थर से बने चोकोर आधार पर किया गया है। हर मंदिर साहब में प्रवेश के लिए परंपरा से अलग हटकर एक ही जगह चारों दिशाओं में प्रवेश द्वार बनाया गया है जिससे यह बात प्रमाणित होती है कि मंदिर किसी एक समुदाय के लिए नहीं बल्कि श्रद्धा रखने वाले सब लोगों के लिए खुला है, इसलिए चारों दिशाओं से लोग आ सकते हैं।
दो मंजिल वाले इस मंदिर में विशाल गुम्बद है। मंदिर की दीवारों को काठ, तांबे, चांदी और संगमरमर पर मीनाकारी से सजाया गया है। बाद मंे पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने हर मंदिर साहब के ऊपरी भाग को तांबे और सोने के पत्तरों से सजा दिया। इस तरह यह गुरूद्वारा स्वर्णिम आभा बिखेरने लगा तथा इसका लोकप्रिय नाम स्वर्ण मंदिर हो गया।
मंदिर के मध्य भाग में गुरू अर्जुन देव द्वारा संकलित वाणियों का आदि ग्रंथ रखा हुआ है। रत्नजड़ित और सजे हुए सोने के सिद्धासन पर रखे इस आदि ग्रंथ का सस्वर पाठ वहां के ग्रंथी (पुजारी) किया करते है।
सुबह और शाम गुरू ग्रंथ साहब के पाठ की आवाज दूर-दूर तक गूंजती रहती है।
सरोवर के बीच हर मंदिर के निर्माण कार्य में कई बाधाएं भी आती रही थीं। सतरहवीं सदी के मध्य में अफगानिस्ताान से आये आक्रमणकारियों ने मंदिर की दीवारों को तोड़ डाला था लेकिन इसके बाद सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया के साथ सामूहिक श्रम दान द्वारा गुरूद्वारे के निर्माण का कार्य तेजी से आरंभ किया गया, साथ ही सरोवर में स्वच्छ जल भरने के लिए हिमालय से निकली व्यास नदी से नहर संपर्क का निर्माण किया गया। यह कार्य सन् 1776 में पूरा किया गया। यह भी कहा जाता है कि अफगान अहमद साह जब काफी सामान लूट कर वापिस जा रहा था तो अमृतसर और लाहौर के बहादुर सरदारों ने लकड़ी से निर्मित दरवाजा छीन लिया। उन लोगों ने उस दरवाजे को हर मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर स्थापित कर दिया जो आज दर्शनी डयोढ़ा के नाम से मशहूर है।
सिक्खों की इस अनुपम तीर्थनगरी की लोकप्रियता प्रति वर्ष बढ़ती जा रही हैै। अब स्वर्ण मंदिर और अमृतसर भारत के प्रमुख पर्यटन कंेद्रों में से एक है। आधुनिक युग में सात आश्चर्यों के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इक्कीसवीं सदी के आरंभ में भारत के सात और आश्चर्यों में दर्शनीय स्वर्ण मंदिर को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है।
उल्लेखनीय है कि अमृतसर स्थित हर मंदिर साहब गुरूद्वारे में किसी धर्म, किसी संप्रदाय या किसी वर्ग के व्यक्तियों के लिए प्रवेश वर्जित नही है लेकिन गुरूद्वारों में प्रचलित कायदे के अनुसार पगड़ी बांध कर अथवा सिर ढंक कर प्रार्थना की जाती है।
कैसे पहंुचें, कहां ठहरेंः-
अमृतसर पंजाब का प्रमुख नगर तथा उत्तर रेलवे का जंक्शन है। यहां राजधानी दिल्ली से राजस्थान से सीधी रेल सेवा है। यहां हवाई अड्डा भी है, जहां वायुयान से पहंुचा जा सकता है। यह स्थान लाहौर सीमा पार दिल्ली तथा चंड़ीगढ़ से पक्की सड़कों से जुड़ा है। अमृतसर में कई अच्छे होटल, सराय और धर्मशालायें हैं। इनके अतिरिक्त गुरूद्वारे में भी ठहरने और भोजन की व्यवस्था है।
Image Ref. - https://hindi.newsaura.com/wp-content/uploads/2017/01/swarn-mandir.jpg
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