योग निद्रा एवं मर्म चिकित्सा द्वारा अनिद्रा रोग का निवारण

प्रस्तावना
दुनियाँ में आधुनिकता की प्रतिस्पर्द्धा चल रही है। सभी समाजों व सभी वर्गों के लोग भी ज्यादा से ज्यादा तकनीकियों को अपना रहें है। तकनीकियों को अपनाने के कारण हमारे जीवन से श्रम कम हो रहा है। शारीरिक श्रम कम होने से ही हमारे समाज में विभिन्न प्रकार के रोगों की उत्पत्ति होनी प्रारम्भ हो गयी। इसी क्रम में मानसिक रोगों में से एक अनिद्रा भी है। पिछले 20-30 वर्षों में ही मानसिक बीमारियाँ जैसे अनिद्रा, तनाव, चिंता, क्रोध, अवसाद, संताप आदि एवं शारीरिक रोग-मधुरोह, गठियाँ, कैंसर, हड्डियाँ कमजोर होना, आंखों की बीमारियाँ, स्लिप डिस्क, त्वचा रोग, पाचन सम्बंधित रोग आदि-आदि का इजाफा बहुत तेजी से हुआ है, और इसी काल में हमने ज्यादा-ज्यादा से तकनीकियों का अपनाया है।
एक दृष्टि में -
विकासशील देशों में अनिद्रा रोग     25 से 30 फीसदी
अविकसित देशों में में अनिद्रा रोग    10 से 20 फीसदी
विकसित देशों में अनिद्रा रोग        60 से 75 फीसदी
आज से 10 वर्ष पूर्व भारत में अनिद्रा रोग का प्रतिशत 10 से 15 प्रतिशत के बीच था पर आज यह रोग तेजी से वृद्धि कर 25 प्रतिशत तक पहुंच गया है। महानगरीय संस्कृति इस रोग से अधिक प्रभावित है। इसका कारण प्रतिस्पर्धा, भागदौड़, मानसिक तनाव, महत्वकांक्षाऐं आदि मनुष्य जीवन में तेजी से पनपी हैं जिससे अनिद्रा रोग भी तेजी से बढ़ा है। अमेरिका में एक सर्वे के अनुसार वहाँ दस में से करीब 7 से 8 व्यक्ति अनिद्रा रोग के शिकार है और 6-7 व्यक्ति प्रतिदिन नींद की गोलिया खाकर सोने का प्रयास करते है। फ्रांस की स्थिति भी करीब-करीब यहीं है। हम यह आसानी से समझ सकते है कि अनिद्रा रोग प्रतिदिन किस प्रकार हावी हो रहा है। विभिन्न विद्वानों से प्रथम दृष्टया अनिद्रा को मानसिक रोग माना है और तदुपरांत इससे विभिन्न शारीरिक रोगों की उत्पत्ति भी बताई है।

योग निद्रा का संक्षिप्त परिचय एवं विवरण -
योग निद्रा, विश्राम की ऐसी स्थिति में जिसमें मनुष्यों को सर्वाधिक आराम मिलता है और कम समय में ज्यादा आराम होने से मनुष्यों की नींद में व्यय होने वाले जीवन को बचाया जा सकता है। योग निद्रा का तात्पर्य योग की विधियों के साथ नींद लेना है।
योग निद्रा का ऐतिहासिक विवरण -
सर्वप्रथम योग, वेदों में पाया जाता है, ऋग्वेद में योग के साथ मंत्रों के उच्चारण का भी उल्लेख मिलता है (ऋ0 10.177.1 व 10.2.30-32)। अथर्ववेद भी इसका अनुपालन करता है (अ0वे0 10.8.83)। विभिन्न भागों में योग का वर्णन हमें वेदों में प्राप्त होता है। इसके बाद योग का विवरण हमें ऐतरेय आरण्यक (2.17, 3.1, 3.4, 3.6), तैतरीय आरण्यक (2.2, 2.7, 2.9), शतपथा ब्राह्मण (1.4.4.7, 14.3.2.3), तैतरीय ब्राह्मण (3.10.18.6, 1.2.6) में मिलता है। कुछ योग के सिद्धान्त हमें कौशिकी, जैमिनी एवं गोपथ आदि में भी प्राप्त होते है। योग के विषयों में बहुत से सिद्धान्त व विधियों पर हमारे उपनिषदों जैसे केना, कठा, कौशिकी, प्रश्ना, मुण्डका, माण्डूक्य, तैतरीय, ऐतरेय, चण्दोगया, वृहदनारायण आदि में प्रकार डाला गया है।
योग निद्रा शब्द हमें सर्वप्रथम माण्डूक्यपोनिषद में मिलता है।
योग के विषयों में हमें महाभारत एवं रामायण में भी बहुत कुछ मिलता है परन्तु योग निद्रा के सम्बन्ध में इनमें भी कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता है।
महर्षि पातंजलि, यत्र-तत्र फैले योग के ज्ञान को संकलित करते हुए सूत्रबद्ध किया। उन्होंने 196 सूत्र और चार खण्डों में पातजंल योग सूत्र की रचना की जो आज योग के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रखती है परन्तु इसमें भी हम योग निद्रा की जानकारी नहीं है।
वेदों में, श्रुतियों में और महाकाव्यों में योग निद्रा का वर्णन न मिलता इस बात की ओर इशारा करता है, कि योग निद्रा का प्रतिपादन उस समय में नहीं हुआ था; यह भी कहा जा सकता है, हमारे ऋषियों ने इसको ज्यादा महत्व नहीं दिया हो।
योग निद्रा का सर्व प्रथम विवेचन हम दुर्गा सप्तशती में पाते है, जो मार्कण्डेय पुरान का एक हिस्सा है। महर्षि मार्कण्डेय योग निद्रा का वर्णनानुसार ‘‘जब कल्प के अन्त में भगवान विष्णु योग निद्रा के सहारे गहरे विश्राम में लेटे हुए है तब उनकी आंखों में योग निद्रा (माया) रहती है। जब भगवान ब्रह्मा श्री हरि विष्णु को योग निद्रा में विश्राम करते हुए पाते है तो वह माया अर्थात योग निद्रा देवी से उन्हें जगाने की प्रार्थना करते है।’’5
कालान्तर में हठ योग प्रदीपिका (4.49) में योग निद्रा को समाधि के रूप् में वर्णित किया गया है। परन्तु यहाँ प्रयोगात्मक रूप से योग निद्रा का वर्णन प्राप्त नहीं होता है।
महान योगी आद्या शंकराचार्य ने योग निद्रा को पूर्ण वर्णन के साथ सर्व प्रथम अपने ग्रंथ ‘योग तारावली’ विस्तारित किया है (25-26)। यह ग्रंथ योग निद्रा का सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ माना जाता है।
इसके बाद 1975 में स्वामी सत्यानन्द सरस्वती, स्वामी रामा व पं0 श्री राम शर्मा आचार्य ने योग निद्रा की विभिन्न विधियों को उजागर करते हुए उनका विस्तार किया। अब योग निद्रा सर्व साधारण के शुलभ हो गयी। अब यह तकनीक मनुष्यों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। संसार भर में विभिन्न रूपों में योग निद्रा के ऊपर बहुत शोध कार्य चल रहें है।

निद्रा, स्वप्न और योग निद्रा -
चेतना की जाग्रत अवस्था के बारे में हम सभी जानते है, लेकिन निद्रावस्था के बारे में हम अभी भी अनजान हैं। नींद सामान्य विश्राम की एक स्वाभाविक स्थिति है, जो नियमित रूप से आती है और जिसमें शरीर और मन उतनी देर के लिए पूरी तरह विश्रान्त हो जाते हैं। चेतन विचार, संवेदना या हलचल का अभाव नींद के लक्षण हैं। योग में इसे प्रत्याहार की एक अवस्था बललाया गया है, क्योंकि हमारी चेतना स्वभाविक रूप से ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों के अनुभवों से पृथक हो जाती है और मस्तिष्क के संवेदी और मोटर कॉर्टेक्स का बाहरी वातावरण से सम्बन्ध धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। ऐसा होने पर चेतना धीरे-धीरे बाह्य कर्मों से हटकर अपने अंतर्जगत की ओर, अपने स्रोत की ओर मुड़ जाती है।
नींद में इन्द्रियों की कार्यप्रणाली धीरे-धीरे एक के बाद एक अपने आप क्रमबद्ध ढंग से शांत होनी चलती है और सजगता अंतर्मुखी होकर मन के गहन स्तरों की ओर दिशान्तरित हो जाती है। तंत्र शास्त्र के अनुसार चेतना को धीरे-धीरे बाह्य जगत से समेटकर चक्रों के माध्यम से इसके स्रोत सहस्रार में पहुंचाया जाता है।

निद्रा का अवतरण-
    जाग्रतावस्था से क्रमशः गहरी निद्रा की अवस्था तक आने में एक साधारण व्यक्ति की मस्तिष्क तरंगों की आवृति बीटा से थीटा में और फिर अन्त में डेल्टा तरंगों में बदल जाती है। मस्तिष्क की इस क्रिया के दौरान चेतना जाग्रत से स्वप्न और फिर निद्रा की ओर बढ़ती है। किन्तु योग निद्रा में अवरोहण की यह क्रिया कुछ अलग है। यहाँ अल्फा तरंगे बीटा तरंगों का स्थान लेकर अधिक देर तक अपना प्राधान्य बनाये रखती हैं। चूंकि अल्फा तरंगों की अधिक क्रियाशीलता विश्राम की परिचायक होती है, अतः यह निष्कर्ष निकाला गया है कि योग निद्रा में नींद भी न्य अवसरों से अधिक विश्रामपूर्ण होती है।
    साधारण मनुष्य, शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक तनावों से मुक्त हुए बिना सोते हैं ऐसा इसलिए होता है कि वे बीटा की अवस्था से सीधे डेल्टा की अवस्था में प्रवेश कर जाते हैं। वे बीच में अल्फा के धरातल पर रूकते ही नहीं, जहाँ पूर्ण विश्राम का राज्य होता है। योग निद्रा में अल्फा तरंगों के प्राधान्य वाली पूर्ण विश्राम की स्थिति को विकसित किया जाता है। यही कारण है कि योग निद्रा द्वारा जिस स्तर का विश्राम प्राप्त होता है, वह मन और शरीर, दोनों के लिए लाभकारी एवं स्फूर्तिदायक होता है।
    योग निद्रा में चेतना की अवस्था साधारण निद्रा में चेतना की स्थिति से एकदम भिन्न होती है। नींद का अर्थ है सोना। चाहे जैसे भी हो, इस सो जाना ही निद्रा कहलाती है; किन्तु योग निद्रा का अर्थ है वह नींद जो सारे दिमागी बोझों एवं तनावों को उतार कर फेंक देती है। यह पूर्ण विश्राम का एक अनुभव है।

योग निद्रा एक उपचार -
रोगोपचार के लिए योग निद्रा का उपयोग अकेले भी किया जा सकता है और मेडिकल चिकित्सा की अन्य विधियों के साथ भी। यह दीर्घकालिक रोग तथा रोग की तीव्र अवस्था में भी लाभदायी होती है। विशेषकर अपकर्षक या मानसिक तनाव सम्बन्धी बीमारियों, जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, आर्थराइटिस आदि के उपचार में यह प्रभावी होती है। दुरुह मनोकायिक बीमारियों जैसे जमा, पेप्टिक अल्सर, माइग्रेन के सरदर्द में योग निद्रा का प्रभाव अधिकाधिक सफलतापूर्वक आंका गया है। स्वस्थ्य एवं सक्रिय लोक इसका अभ्यास संचित तनावों को दूर करने, तनाव प्रतिरोध एवं अपनी सम्पूर्ण क्षमता को बढ़ाने तथा मनोकायिक बीमारियों को बढ़ने से रोकने के लिए कर सकते हैं।
अनिद्रा की बीमारी में विश्राम की इस चिकित्सा पद्धति ने सफलता अर्जित की है। इस प्रकार के रोगियों को योग निद्रा के अभ्यास से लेटने के बाद निद्रा की अवस्था में प्रवेश करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। अनिद्रा के पुराने रोगी, जो सोते समय योग निद्रा का अभ्यास करते हैं, उन्होंने बताया है कि वे अभ्यास के दौरान ही सो जाते हैं। नींद न आने की बीमारी वाले रोगियों को योग निद्रा के अभ्यास के साथ दैनिक परिश्रमपूर्ण जीवन दिन को न सामने और साथ में आसन तथा अन्य शारीरिक श्रम के कार्यों में संलग्न रहना होगा। जैसे-जैसे योग निद्रा के अभ्यास में दक्षता प्राप्त होती है, निद्राजनक उपशामक पर निर्भरता समाप्त होती जाती है, जिससे व्यक्ति बाद में होने वाले दवा के पार्श्व प्रभावों-दुःस्वप्न, मस्तिष्क तरंग प्रारूप के विघटन तथा निद्रा की लय भंग होने तथा अन्य स्नायविक गड़बड़ियों से बच जाता है। 14 मानसिक चिकित्सा की पारम्परिक विधियों के साथ योग निद्रा एक प्रभावकारी सहायक के रूप में कार्य करती है, विशेषतः उन रोगों में जहाँ अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ निष्प्रभावी हो जाती हैं।
एक शोध यनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया मेडिकल सेन्टर एट डेविस यू.एस.ए. के शोधकर्ताओं ने किया था। जिसमें कहा गया कि योग निद्रा से कई प्रकार से जीवन में सुधार लाया जा सकता है यथा -
  • नींद न आना तथा निद्रा के व्यवधानों से मुक्ति पाना
  • चेतन सजगता द्वारा दर्द की कमी महसूस करना
  • निराशा या हलाशा की भावना, जो प्रायः दीर्घकालिक रोगों को जटित बनाती है, उसमें थोड़ी कमी
  • नशीली दवाओं जैसे नींद की गोली, दर्द कम करने की गोली आदि की आवश्यकता में कमी इत्यादि

योग निद्रा अभ्यास/रूपरेखा -
सामान्यतः योग निद्रा का अभ्यास 20 से 40 मिनट में पूरा होता है। जो लोग उच्च रक्तचाप तथा अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं एवं जो योग के आध्यात्मिक पक्ष को गहराई से जानना चाहते हैं, उन सभी के लिए योग की अलग-अलग तकनीकें हैं। वास्तव में योग निद्रा एक बहुत ही आसान अभ्यास है जिसे आप टेपरिकार्डर से भी सीख सकते हैं। इसके लिए आप एक शांत कमरा चुनिए व खिड़की व दरवाजे बंद कर लीजिए। इन्फोरमेशन टेक्नोलॉजी यत्रंों को बंद कीजिए। ढीले कपड़े पहनकर, शवासन में लेट जाइये। मन को एकाग्र मत कीजिए और न ही अपनी श्वास को नियंत्रित कीजिए, केवल निर्देशों को सुनते जाइये और उनका मानसिक रूप से पालन करते जाहये। योग निद्रा में जागते रहना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस अभ्यास का उद्देश्य सजगता है और यदि आप सो जायेंगे तो सजगता खो देंगे। कुछ बिन्दू, जिन्हें योग निद्रा के अभ्यास के दौरान क्रमशः पालन किया जाता है -
  • अंतर्मौन की प्राप्ति
  • चेतना को योग निद्रा के लिए तैयार करना
  • संकल्प
  • चेतना को घूमाना
  • श्वास की सजगता
  • भावनाएं एवं संवेदनाएं
  • मानस दर्शन
  • अभ्यास की समाप्ति
अल्प अवधि योग निद्रा अभ्यास -
    यह अभ्यास कार्य-स्थल पर अल्प विश्राम के लिए किया जाता है। यह 5-10 मिनट का होता है। शवासन में कुछ समय शांत लेटकर, अपने को सामान्य अवस्था में रखते हुए बाहर से विभिन्न प्रकार की आ रही आवाजों पर अपनी सजगता को लगाते है। अब अपने ध्यान को अपने शरीर पर ले जाते है। गहरी श्वास लेते है और सजगता बनाये रखते है। अपनी चेतना को शरीर और जमीन के सम्पर्क स्थानों पर ले जाइये और महसूस कीजिए। अब अपनी चेतना को शरीर के सभी अंगों पर तेजी के साथ घुमाइये। दायी भाग, बाया भाग, पीठ का भाग, पृष्ठ भाग, गले का भाग, नासिका, ललाट अथवा सिर के सभी भागों पर। समयानुसार 11 से 1 अथवा 27 से 1 तक गिनती कीजिए। एक लम्बी गहरी श्वास लीजिए। कुछ समय तक शांत लेटे रहिए और शरीर को धीरे से तानिए। अब आंखे खोलिए और उठ जाइये, यह एक पूरा अभ्यास है। यह अभ्यास बैठकर भी कर सकते है परन्तु शवसन में ज्यादा लाभकारी है। गिनती को 54 से 1 तक भी किया जा सकता है। यह रोगी की स्थिति अनुसार स्वयं चिकित्सक निर्धारित करते है।

मर्म चिकित्सा
‘मर्म’ कोई आधुनिक शब्द नहीं है, यह अत्यन्त पुरातन शब्द है। वेद, उपनिषद से लेकर समस्त योग एवं आयुर्वेद के ग्रन्थों में ‘मर्म’ की अवधारणा मिलती है। वैसे तो ‘मर्म’ शब्द का प्रयोग आम आदमी की बोल चाल की भाषा में भी किया जाता है। जिसमें मर्म शब्द से किसी भी विषय का मूल अभिप्राय या सार या निचोड़ अर्थ ग्रहण किया जाता है। योग एवं आयुर्वेद में ‘मर्म’ को ‘प्राण ऊर्जा’ के विशेष केन्द्र के रूप में लिया जाता है। हर किसी को शरीर के जिन विशिष्ट स्थलों पर आहत होने पर तथा दबाव पड़ने पर वेदना का अनुभव होता है, उन स्थलों को मर्म के रूप में जाना जाता है।1 इसी भूमिका को लेकन चीन, जापान, श्रीलंका, मॉरिशस आदि देशों में निदान एवं चिकित्सा की अनेक प्रणालियाँ जैसे एक्युप्रेशर, एक्यूपंक्चर, शियात्सु, मॉक्सिवुसतों, केम्पू, सबो, अन्मा आदि वहाँ के लोगों मंे प्रचलित हुई, जिनका व्यवहार वर्तमान में भी व्यापक रूप से पूरे विश्व के अन्दर हो रहा है।

चिकित्सकीय परीभाषा के अनुसार शरीर के वह विशिष्ट भाग, जिन पर आघात होने या चोट लगने से व्यक्ति की मृत्यु सम्भव है, उन्हें मर्म कहा जाता है। आचार्य वाग्भट के अनुसार ‘‘ऐसा स्थल जहाँ स्पर्श करने पर स्पंद प्रतीत हो तथा पीड़न करने पर पीड़न से ज्यादा वेदना प्रतीत हों, उसे मर्म कहते हैं। ये जीवन के केन्द्र बिन्दु होते हैं।’’ आचार्य सुश्रुत के अनुसार ‘‘मांस, सिरा, स्नायु, अस्थि और संधि के संयोगस्थान मर्म हैं। इन मर्मों में ही स्वाभाविक रूप से प्राण रहते हैं। इसलिए मर्मों के ऊपर आघात होने से शब्द, स्पर्श, रूप, रसादि इन्द्रियार्थों का ज्ञान नष्ट हो जाता है और मन तथा बुद्धि बदल जाती है। अन्य शास्त्रों में मर्म स्थान पर आघात होने से भ्रम, प्रलाप, गिरना, प्रमोह आदि लक्षण कहे गये हैं।’’ ईश्वर ने मनुष्य शरीर में स्वास्थ्य संरक्षण, रोग निवारण एवं अतीन्द्रिय शक्तियों को जाग्रत करने हेतु 107 मर्मस्थानों का सृजन किया है। इन स्थानों के विषय में हमारे ऋषियों को सुस्पष्ट ज्ञान हुआ तथा उन्होंने लोकहितार्थ व आत्म-कल्याणार्थ इसका प्रयोग किया।



अनिद्रा संक्षिप्त विवरण -
अनिद्रा शब्द से ही समझ में आ रहा है नींद नहीं आना। अनिद्रा, रोग में व्यक्ति सोने का प्रयत्न करता है पर उसे नींद नहीं आती है और करवटें बदलता रहता है विचारों की शृंखला लगातार चलती रहती है। आज के भागमभाग व प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली में विचार अपनी एक पूरी श्रृंखला बना लेते है जोकि उसके अंतस में लगातार चलते रहते है और सोने के समय बेचैन करते है और अनिद्रा की स्थिति पैदा करते हैं। यदि यही स्थिति लम्बे समय तक रहे तो अनिद्रा रोग हो जाता है। नींद मानव स्वभाव की प्रकृति है। व्यस्क व्यक्ति दिन में 6 से 8 घंटे तथा नवजात शिशु 18 से 20 घंटे एवं 8 से 12 वर्ष के बच्चे 10 से 12 घंटे तक नींद लेते है।

अनिद्रा रोग के प्रकार  -
    बहुत देर तक नींद न आना (प्रथम अवस्था)
    सोते समय बार बार निद्राभंग होना और फिर कुछ देर तक न सो पाना, (द्वितीय अवस्था)
    थोड़ा सोने के पश्चात् शीघ्र ही नींद उचट जाना और फिर न आना, (तृतीय अवस्था)
    बिल्कुल ही नींद न आना (चतुर्थ अवस्था)

योग निद्रा व मर्म चिकित्सा का मस्तिष्क पर प्रभाव -
मस्तिष्क के रसायन (न्यूरोट्रांसमिटर्स) एवं रक्त कणिकाओं से स्रावित होने वाले रसायन अन्योन्याश्रित तौर पर विकृत रूप से कार्य करने लगते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया का भावनाओं से निकट का सम्बन्ध भी समुचित रूप से दर्शाया गया है। सामान्य निरीक्षण से, आधुनिक शोध पत्रों से, लक्षणों की विशिष्टता से एवं आधुनिक चिकित्सा पद्धति की असफलता से यह बात स्पष्टतः साबित होती है कि इस मनोकायिक रोग की समुचित चिकित्सा एक अन्य स्तर से करने की आवश्यकता है, जो शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, प्राणिक और अन्य सूक्ष्म स्तरों तक इस विकृति को प्रभावित कर रोग को समूल नष्ट कर सके। इस परिप्रेक्ष्य में योग चिकित्सा इन सभी स्तरों को प्रभावित करने का एक सशक्त विकल्प बन कर हमारे सामने आती है।
    योग की क्रियाएं मस्तिष्क में सेरेटॉनिन-मेलाटॉनिन इत्यादि रसायनों के स्रावण चक्र को, उनकी मात्रा को एवं अनुपात को पुनर्व्यवस्थित करती हैं। वे व्यक्ति को संवेदनात्मक तौर पर अधिक संतुलित बनाती हैं तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण में व जीवनशौली में परिवर्तन लाकर मनोकायिक सम्बन्धों को संतुलित करती हैं।
मस्तिष्क चेतना के शारीरिक रूप को मन, शरीर एवं भावनात्मक रूप से जोड़ता है तथा उनमें एकता पैदा करके जीवन को संतुलित करने का कार्य करता है। नाड़ी विज्ञान मस्तिष्क में हलचल पैदा करके शरीर पर उसका प्रभाव देखता है, लेकिन योग निद्रा का अभ्यासी बिल्कुल इसके विपरीत अपने अभ्यास की प्रक्रिया को प्रारम्भ करता है। वह अपना अभ्यास स्नायु-पथ को उत्तेजित कर शरीर की सजगता बनाये रखने से प्रारम्भ करता है एवं मस्तिष्क में हलचल पैदा करता है।
    शरीर पर सजगता बनाये रखने की यह विधि केवल शारीरिक विश्राम ही नहीं प्रदान करती, वरन मस्तिष्क तक जाने वाली सभी संवेदनशील नाडियों के रास्ते भी स्वच्छ करती चलती है। इससे मस्तिष्क और भी सशक्त होकर शारीरिक क्रियाओं का ही संतुलन नहीं रखता, अपितु जो विचार आते-जाते हैं, उनको भी संतुलित करता है। इस प्रकार यह विधि मस्तिष्क के सभी रास्तों को स्वच्छ करती है। व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को निखारते हुए, अपनी समस्याओं को दूर करने में सफलता अर्जीत करता है।



निष्कर्ष:
    यौगिक क्रियाऐं सभी आयु वर्ग के लिए लाभकारी है परन्तु उम्र 40 के पश्चात मनुष्यों के शरीर में विभिन्न बदलाव आते है जिससे बहुत सी यौगिक क्रियायें जिनमें आसन, अधिक देर तक बैठकर किए जाने वाले प्राणायाम अभ्यास में मुश्किलें पैदा करती है अर्थात अधेड़ उम्र व बुजुर्गों के लिए कुछ दूसरी यौगिक तकनीकों का उपयोग करना अधिक उचित जान पड़ता है; इनमें से अभ्यंग चिंिकत्सा, मर्म चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, प्राण चिकित्सा एवं योग निद्रा इत्यादि आती है। एक ओर योग निद्रा में केवल निर्देशों को सजगता के साथ सुनकर अनुपालन की आवश्यकता होती है दूसरी ओर मर्म चिकित्सा में मर्म बिन्दुओं के ज्ञान का होना अतिआवश्यक है असावधानी से मर्म चिकित्सा कभी-कभी समस्या भी खड़ी कर सकती है।

शोधार्थी यह भी मानता है कि आज मनुष्यों को जीवनयापन के लिए कड़ी शारीरिक मेहनत या कड़ी मानसिक मेहनत करनी होती है। परन्तु यहाँ संतुलन नहीं है क्योंकि जो शारीरिक मेहनत करते है वे मानसिक मेहनत करते नज़र नहीं आते और जो मानसिक मेहनत करके जीवन यापन करते है वे शारीरिक मेहनत करते नज़र नहीं आते। बहाना सभी का एक ही होता कि हमारे पास समय नहीं है। ऐसे में जब रोग आ घेरते है तो इस प्रकार के रोगी जिनकी उम्र भी ज्यादा होती है, चाहते है कि कम समय में ही हमारे रोग का निदान हो जाये, और इस प्रकार की चिकित्सा पद्धति हमारी योग शास्त्रों में वर्णित योग निद्रा एवं आयुर्वेद में वर्णित मर्म चिकित्सा बहुत महत्व रखती है।

शोधार्थी अपने अध्ययन के आधार पर कह सकता है कि अनिद्रा रोग को जड़ से समाप्त किया जा सकता है और इसका एक सशक्त माध्यम ‘‘योग निद्रा एवं मर्म चिकित्सा’’ है जोकि क्रमशः एक योग प्रक्रिया व दूसरी नाड़ी विज्ञान है और हमारे जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर इसकों किया जा सकता है। योग निद्रा करने के लिए वाह्य निर्देश की सहायता या किसी दूसरे पर आश्रितता की आवश्यकता रहती है यह कभी भी किसी भी समय, खुले स्थान पर अथवा कमरे में किया जा सकता है। स्वस्थ्य मनुष्यों को भी प्रतिदिन नियमित स्वमर्म चिकित्सा व योगनिद्रा लेनी चाहिए। यह हमारे जीवन में उपयोगी शारीरिक एवं मानसिक संतुलनों को बनाए रखता है। ‘‘अनिद्रा रोग पर योग निद्रा एवं मर्म चिकित्सा के सकारात्मक प्रभाव पाये गये है, प्रतिदिन व नियमित करने पर अनिद्रा रोग को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।’’




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